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ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर गया...... "पू

ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर गया......

    "पूरी कविता शीर्षक में"
 *ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला*

आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी,
पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था।
जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की,
पर ओ सोचता रहा उसका क्या कसूर था।।

*आंखों में अश्रु लिए ये सफ़र भी ओ काटता चला।*
ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर गया......

    "पूरी कविता शीर्षक में"
 *ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला*

आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी,
पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था।
जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की,
पर ओ सोचता रहा उसका क्या कसूर था।।

*आंखों में अश्रु लिए ये सफ़र भी ओ काटता चला।*