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कौन से दर पे जाके अपील करता कोई सुनता नहीं क्या दल

कौन से दर पे जाके अपील करता
कोई सुनता नहीं क्या दलील रखता 
सारी दुनियां तो अपने में मशगूल है 
जो हृदय में है वो कौन फील करता
कौन से दर पे...
लोग कहते हैं जीवन ये अनमोल है
पर किसी लब पे मीठा कहां बोल है
बिक गए जज सभी क्या वकील करता
कौन से दर पे...
आज हर सोच में सिर्फ़ व्यापार है
मरहमों में भी मीठी सी अब धार है
बेवफा होके खुद से कैसे डील करता
कौन से दर पे...
अब तो संगम कहीं "सूर्य" होता नहीं
सच्चे अनुराग में कोई रोता नहीं 
बेवजह कैसे आखों को झील करता
कौन से दर...

©R K Mishra " सूर्य "
  #अपील  Kanchan Pathak Mili Saha एक अजनबी भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन Utkrisht Kalakaari