सुनो ऐसे आहे भर के तुम मुह फेर लेते हो सितम ऐसा तुम्हारा मेरे दस्तूरों को लेकर ए सनम अगले जनम के वादों के साथ रह रह के सितम देते हो आओ कभी मेरे दिल के किनारों के पास तुम भी देखो मोह्हबत की दरिया में बरसती ये बदल और ये दीवानगी है मैं भूल जाउ कभी तुम्हे मेरी हसरतो में फिर तुम आंखों से मिलने की आहे भर देते हो.......!! (मानवेन्द्र की कलम से) मानवेन्द्र की कलम से