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तेरी आँखें इस स्याह समंदर से गहरी लगती हैं, इन गा

तेरी आँखें इस स्याह समंदर से गहरी लगती हैं,
 इन गालों से लिपटी हया भरी दोपहरी लगती हैं।

इन जुल्फों के साए में ऐसे उलझा हूं अब तो मैं,
तेरी बातें मुझको अब, ठहरी -ठहरी सी लगती हैं ।

©Rajat Pratap Singh
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