'प्राच्य की खुश्बू' दूर दार्जलिंग सुहाना रहा पूरा मण्डली भी दीवाना रहा मस्त हवा के झौंके रहे पर अरुण जी सोते रहे सब अपनी बैठक से ऊब से गये पर तू तू और मैं मैं डूबते से गये संगीत के बेकाबू मौके रहे पर अरुण जी सोते रहे चाय बगान जब मिलने शुरू हुये खुशबू फैली मंजिल के रूबरू हुये भीड़ भरे पुरातन शहर में खोते रहे पर अरुण जी सोते रहे यात्रा का उद्देश्य अब आरंभ हुआ प्रिय मित्र का संदेश प्रारंभ हुआ अजीज की व्यस्तता छोटे रहे पर अरुण जी सोते रहे जागरण को बॉबी ने संभाला मदिरा को सबों ने धो डाला हम सब बैचैन होते रहे पर अरुण जी सोते रहे। कुर्सी कभी भी छिन सकती है। #treval #fraindship #orientalism #विप्रणु #doctorsahab