मुझे मत'ले-बह्र का इल्म नही हैं, यारो मैं फिर भी लिखता जाता हूँ। काफ़िये को रदीफ़ से मिला बस मैं, नाम गज़ल लिख, मन बहलाता हूँ।। तालीम नहीं उर्दु की मेरी, फिर भी, जज़्बातों के शेर सुनाता जाता हूँ। यारों मुझे बता दो क्या ख़ता हैं मेरी, जो मैं फिर भी शायर कहलाता हूँ।। जो मैं फिर भी शायर कहलाता हूँ। जो मैं फिर भी शायर कहलाता हूँ।। बहुत से दिग्गज़ लेखक आजकल बहुत कुछ टिप्पणी कर रहें हैं की लोगों को लिखना नहीं आता और बेतुका लिख कर साहित्य का बलात्कार कर रहें हैं। मैं एक साधारण सा व्यक्ति हूँ और जो भी थोड़ा बहुत लिखता हूँ वो बस अपने जज़्बातों को शब्दों में पिरो कर बयाँ कर देता हूँ। दिल को बहला लेता हूँ अपने, यूँ ही बातें कर के। सीखने का इच्छुक हूँ। चाहूँगा की कलमकार मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत करवाये और मुझे सुधारे। महज़ शौक़िया लिखता हूँ और जो भी मैनें लिखा यहीं सबसे सीख के लिखा है। मैं ये मानता हूँ की सीखने की शुरुआत पहले पायदान से होती है और धीरे धीरे कर के ही लोग सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। जो गुणी हैं वो अपना ज्ञान सबको बांटे और जो सीखने को ललायित हैं वो इनसे सीख के अपने ज्ञान की सीमा बढ़ाए।