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कभी पल की खुशी बन उभर जाती हूं, या ऐसा कहूं की में

कभी पल की खुशी बन उभर जाती हूं,
या ऐसा कहूं की में निखर जाती हूं,
कभी शाम का ढलता सूर्य बन मैं
तप्ती अंदर आग जो उसे दबा सोना खुद को बना लेती हूं...!!
या ऐसा कहूं उसे ठंडा कर खुद को लोहा बना लेती हूं,
कभी अंदर ही अंदर जल मैं कुछ अच्छा पका लेती हूं....!!
फिर शब्दों मैं सजा उन्हें दुनियां को परोस देती हूं,
कुछ स्वाद फीका बताते हैं और कुछ नमकीन समझ जाते हैं,

कभी पल की खुशी बन उभर जाती हूं, या ऐसा कहूं की में निखर जाती हूं, कभी शाम का ढलता सूर्य बन मैं तप्ती अंदर आग जो उसे दबा सोना खुद को बना लेती हूं...!! या ऐसा कहूं उसे ठंडा कर खुद को लोहा बना लेती हूं, कभी अंदर ही अंदर जल मैं कुछ अच्छा पका लेती हूं....!! फिर शब्दों मैं सजा उन्हें दुनियां को परोस देती हूं, कुछ स्वाद फीका बताते हैं और कुछ नमकीन समझ जाते हैं, #Quotes #ShamBhiKoi #always_smile11_15

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