हाँ, मैं उनको पढ़ा करता हूँ ___________________ उस आबशार पे, उस रस की धार पे, बेखुद,बेसाख्ता सूखे पत्ते सा बहा करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. छूटी हैं मंजिलें, भूले हैं रास्ते, उस मोड़ पर खडा हुआ, आसमान ताका करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. वो जो चढाते हैं , लफ्जों को जुम्ला , उन आईनों को देख, बेमोल बिका करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. मंदिर की घंटियाँ, बचपन के कहकहे, अनंत की आवाज़, उनके गीतों में सुना करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. रखी हैं संजो कर, जो तकिये के किनारे, उन नज्मों को छू आयें, सपनों से कहा करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. क़फ़स में क्या मज़ा है, अंकुर क्या जाने, उन सिकन्जो के साथ, बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. दे सारी उम्र मेरी, उनकी कलम को तू, ओ मेरे भगवान , बस इतनी दुआ करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. #reading ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) हाँ, मैं उनको पढ़ा करता हूँ ___________________ उस आबशार पे, उस रस की धार पे, बेखुद,बेसाख्ता सूखे पत्ते सा बहा करता हूँ, हाँ, मैं उन को पढ़ा करता हूँ. छूटी हैं मंजिलें, भूले हैं रास्ते,