बचपन में रो लेना कितना आसान होता है न, जबकि उम्र में एक वक़्त के बाद आँखों में आये आंसुओ की वजह बतानी होती है l जैसे जैसे हम बड़े होते हैं- चीजों को हम छिपाने लगते हैं, लोगों की परवाह करने लगते हैं, सामने वाले के रूठ जाने और खुशियों की फिक्र भी होने लगती है और नतीज़ा ये होता है कि हम झूठ बोलने लगते हैं और अपने ही इस मासूम से दिल को तकलीफ दे बैठते हैं.. पर सबसे बुरा तो तब लगता है - जब कोई सामने से पूछे कि कैसे हो ?? और न चाहते हुए भी, जवाब में हमें ये कहना पड़ता है कि - हम बिल्कुल अच्छे हैं! जबकि बात असल में ये होती है कि - हम बिल्कुल भी अच्छा नहीं महसूस कर रहे होते हैं और ये सच्चाई भी तो सिर्फ हमारा दिल जानता है या वो रब जानता है .. ✍🏻✍🏻.. Sparsh #mypoetry #Bachchan