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तेरी यादों ने कुछ इस क़दर मुझ पर बरफ बरसाए कंपकपा क

तेरी यादों ने कुछ इस क़दर मुझ पर बरफ बरसाए
कंपकपा कर चीख़ती रहीं ख़ामोशियाँ सारी, पर लफ्ज़ एक ना होठों पर आए
सिमट कर बैठा रहा उस बर्फीले तूफ़ान में, सितम सहे ख़ूब
ज़िम्मेवार बनी वो धूप मेरी मौत का, था मंज़र मेरी मौत का इतना अनूप
तेरी बाहों की गरमाहट ही सिर्फ़ बचा सकती थी मुझे जो क़िस्मत मे नही था मेरी, बेग़ुनाह है वो बेचारी ग़ुलाबी धूप... ठंड की वो गुलाबी धूप...
तेरी यादों ने कुछ इस क़दर मुझ पर बरफ बरसाए
कंपकपा कर चीख़ती रहीं ख़ामोशियाँ सारी, पर लफ्ज़ एक ना होठों पर आए
सिमट कर बैठा रहा उस बर्फीले तूफ़ान में, सितम सहे ख़ूब
ज़िम्मेवार बनी वो धूप मेरी मौत का, था मंज़र मेरी मौत का इतना अनूप
तेरी बाहों की गरमाहट ही सिर्फ़ बचा सकती थी मुझे जो क़िस्मत मे नही था मेरी, बेग़ुनाह है वो बेचारी ग़ुलाबी धूप... ठंड की वो गुलाबी धूप...

ठंड की वो गुलाबी धूप...