बहुत गुरुर था मेरे घर की छत को उसके छत होने का, एक मंज़िल और क्या बन गयी साहिब, गुमान टूट गया छत का, एहसास हो गया उसे मात्र फ़र्श होने का🖤 बहुत गुरुर था मेरे घर की छत को उसके छत होने का, एक मंज़िल और क्या बन गयी साहिब, गुमान टूट गया छत का, एहसास हो गया उसे मात्र फ़र्श होने का🖤