दुःखी न हो कोई जग में,न हो दर्द से आँखें लाल कोई, यह तो किताबी बातें आँसू पोछने देता न रुमाल कोई। चहुँ ओर फैला जंगलराज, सहमा हुआ हर भारतवासी, गर जीना है तो मूक बनकर रहो पूछो न सवाल कोई। नन्ही कलियां मसल दी जाती है खिलने से पहले, हर मोड़ पर बैठा दरिंदा बिछाकर नया जाल कोई। छोड़ बुढ़ापे में यूँ अकेला बेटा चला गया परदेश, न पूछो उस माँ का दर्द जिसका पूछे न हाल कोई। लुट रही बीच चौराहे पर बहन,बेटी की इज्जत आज, मूकदर्शक बने सभी न किसी के दिल में मलाल कोई। राजनेता भी बीके टुकड़ों में धर्म के गलियारे पे आज, क्यों आज के युवाओं के खूँ में चंद्रशेखर सा उबाल कोई। बिक रहा "स्नेहा" का वतन चंद कागज़ के टुकड़ों में, कर रहा है वतनपरस्ती बनकर यहाँ दलाल कोई । #स्नेहा_अग्रवाल #मैं अनबूझ पहेली