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इक रोज़ सोशल मीडिया पर दिखी वो छोटू से गोले से झाँक

इक रोज़ सोशल मीडिया पर दिखी वो
छोटू से गोले से झाँकती उसकी एक
नन्ही सी झलक से उसे पहचान गया
नयनों में कौंध गए वो पुराने दिन
जैसे टाइम मशीन में बैठ पीछे घूम आए!
सोचा डीपी ज़ूम करके देखी जाए
बदल गयी या वैसी ही है अलहदा अल्हड़!
लेकिन पहले की तरह अब भी 
एक सुरक्षा घेरा है जिसे लोग अब
प्रोफइल सिक्योरिटी कहते है!
सोचा मित्रता का प्रस्ताव भेंज दूं,
सहसा मन मे ख्यालों का ज्वार भांटा उठा
लेकिन प्रस्ताव भेज कर करूँगा भी क्या?
बात! अरे बात तो तब नही हुई जब करनी थी,
उसकी तुनकमिज़ाजी कहिए या 
हमें अस्वीकृति का भय
सहसा मन मे कौंधी एक मित्र की बात
फुलों को बस निहारना चाहिए
क्या फूलों को बात करते देखा है कभी..
नही न!फूल बस निहारने के लिए होते है
बात करने के लिए नही! 
"कुछ पल का साथ" तो है नही
एक सदी जी आया हूँ उसके साथ कल्पनाओं में
इसलिए आज़ भी केवल निहारता हूँ! कुछ पल का साथ (कविता)

इक रोज़ सोशल मीडिया पर दिखी वो
छोटू से गोले से उसकी एक
नन्ही सी झलक से उसे पहचान गया
नयनों में कौंध गए वो पुराने दिन
जैसे टाइम मशीन में बैठ पीछे घूम आए!
सोचा डीपी ज़ूम करके देखी जाए
इक रोज़ सोशल मीडिया पर दिखी वो
छोटू से गोले से झाँकती उसकी एक
नन्ही सी झलक से उसे पहचान गया
नयनों में कौंध गए वो पुराने दिन
जैसे टाइम मशीन में बैठ पीछे घूम आए!
सोचा डीपी ज़ूम करके देखी जाए
बदल गयी या वैसी ही है अलहदा अल्हड़!
लेकिन पहले की तरह अब भी 
एक सुरक्षा घेरा है जिसे लोग अब
प्रोफइल सिक्योरिटी कहते है!
सोचा मित्रता का प्रस्ताव भेंज दूं,
सहसा मन मे ख्यालों का ज्वार भांटा उठा
लेकिन प्रस्ताव भेज कर करूँगा भी क्या?
बात! अरे बात तो तब नही हुई जब करनी थी,
उसकी तुनकमिज़ाजी कहिए या 
हमें अस्वीकृति का भय
सहसा मन मे कौंधी एक मित्र की बात
फुलों को बस निहारना चाहिए
क्या फूलों को बात करते देखा है कभी..
नही न!फूल बस निहारने के लिए होते है
बात करने के लिए नही! 
"कुछ पल का साथ" तो है नही
एक सदी जी आया हूँ उसके साथ कल्पनाओं में
इसलिए आज़ भी केवल निहारता हूँ! कुछ पल का साथ (कविता)

इक रोज़ सोशल मीडिया पर दिखी वो
छोटू से गोले से उसकी एक
नन्ही सी झलक से उसे पहचान गया
नयनों में कौंध गए वो पुराने दिन
जैसे टाइम मशीन में बैठ पीछे घूम आए!
सोचा डीपी ज़ूम करके देखी जाए