#OpenPoetry तेरा शहर गुजर रहे थे जब तेरे शहर से , काम लेना तो था मुझे सब्र से । मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी , आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी । और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी , ऐसा लगा कि तू मुझे छोड़ के जा रही है.. और बड़ी जोर से तेरी याद आने लगी । बाहर आने को आतुर थी , दिल की धड़कन ,धड़क धड़क कर । मगर बेचारी रह गई , सीने के अंदर तड़प तड़प कर । सांसे चल रही थी ऐसी , जैसे कि कह रही हो - कि ट्रेन से उतर जाओ गौरव , वो यहीं कहीं तो होगी । जैसे ही मै हाथ बढ़ाऊंगा , तुम मेरे साथ चल दोगी । हाल रूह का ऐसा था - जैसे इलाज से मिलने आया रोगी । तभी गले लग कर रोते देखा , मैंने एक जोड़े को प्लेटफार्म पर । हाथ छुड़ा कर जाते देखा ,लड़की को मैंने प्लेटफॉर्म पर । फिर हां ना की खींच तान में , ट्रेन काफी आगे निकल गई । मगर तू तो इस शहर में नहीं, कैसे ये बात मेरे जहन से निकल गई । चलो , अच्छा ही हुआ ,जो उतरे नहीं थे हम ट्रेन से । कैसे कैसे खुद को सम्हाला था , तुम्हारे जाने के बाद , फिर हो जाते हम पहले से - बेचैन से । फिर वादा खुद से कर आए हम ,गुजरते हुए तेरे शहर से । कि जोड़ेंगे खुद से ,याद किसी और की, क्योंकि जहर को काटते हैं जहर से ।। #OpenPoetry तेरा शहर गुजर रहे थे जब तेरे शहर से काम लेना तो था मुझे सब्र से मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी