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मेरा क़सूर क्या था? मुझे घर ही तो जाना था, भूख मिटा

मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला किसी का सहारा था,
जान के ऊपर अब आना था,
भूख में महीनों इन्तेजार करना था,
अब आख़री फैसला था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था!

चलना पैदल ही था,
रास्ता खुद ब खुद बन जाना था,
सड़क भी अब बेगाना था,
इसलिये रेलवे ट्रैक पर आना था,
चलते ही चलते जाना था,
मंजिल का न अभी तक कोई पता था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था?

दिन-रात सफर कर थक जाना था,
कब तलक नींद को धोका देना था,
आंख लगी तो रेलवे ट्रैक पर सोना था,
क्या पता था की आखरी नींद था,
रात गुजरते ही सुबह को फिर आना था,
मगर मुझे तो ईश्वर के पास जाना था,
मेरा क़सूर क्या था? मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला किसी का सहारा था,
मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला किसी का सहारा था,
जान के ऊपर अब आना था,
भूख में महीनों इन्तेजार करना था,
अब आख़री फैसला था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था!

चलना पैदल ही था,
रास्ता खुद ब खुद बन जाना था,
सड़क भी अब बेगाना था,
इसलिये रेलवे ट्रैक पर आना था,
चलते ही चलते जाना था,
मंजिल का न अभी तक कोई पता था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था?

दिन-रात सफर कर थक जाना था,
कब तलक नींद को धोका देना था,
आंख लगी तो रेलवे ट्रैक पर सोना था,
क्या पता था की आखरी नींद था,
रात गुजरते ही सुबह को फिर आना था,
मगर मुझे तो ईश्वर के पास जाना था,
मेरा क़सूर क्या था? मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला किसी का सहारा था,