कैसी ये खलिश कैसा ख़ुमार है, के जिए जा रहे है माना जीना दुश्वार है ख़व्वाहिशें बेहिसाब है मुक्कमल हुई दो चार है खुशियां तो खरीदी नगद दुख मिले उधार है नशा ज़िंदगी का अजीब है हार थक कर बिस्तर पर उतरता अगले दिन फिर सर पर सवार है कैसी ये खलिश कैसा ख़ुमार है । #ज़िन्दगी #हारनामत #थमनामत