बात चाहत की हैं वर्ना क्यों तुझपे अपना ध्यान करूँ, तू इतना ज़ालिम हो चुका है कि अब क्या तुझ पर ऐतबार करूँ! बात चाहत की हैं वर्ना क्यों तुझपे अपना ध्यान करूँ, तू इतना ज़ालिम हो चुका है कि अब क्या तुझ पर ऐतबार करूँ!