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जिसके हर सफ़हे पे ज़िक्र तेरा था जिसके हर तहरीर में

जिसके हर सफ़हे पे ज़िक्र तेरा था
जिसके हर तहरीर में अक्स तेरा था।
जिसे कभी सिरहाने रख कर सोया करता था
लगा कर दिल से कभी बेज़ार रोया करता था।
जिसमे तुम्हारे गुलाबों का ज़िक्र था
और मेरे आईने की बात थी।
जिसमे कुछ ग़ैर मुमकिन से ख़्वाब थे।
कुछ बिख़रे मगर संजिदा ज़ज़्बात थे
मेंरे एहसासों की खुशबुएँ थी
तुम्हारी यादोँ की महक थी।
आज फिर ज़िन्दगी ने खोली थी उन्हीं यादोँ की किताब
और आज फ़िर तुम याद आये बेहिसाब।। #बेहिसाब
जिसके हर सफ़हे पे ज़िक्र तेरा था
जिसके हर तहरीर में अक्स तेरा था।
जिसे कभी सिरहाने रख कर सोया करता था
लगा कर दिल से कभी बेज़ार रोया करता था।
जिसमे तुम्हारे गुलाबों का ज़िक्र था
और मेरे आईने की बात थी।
जिसमे कुछ ग़ैर मुमकिन से ख़्वाब थे।
कुछ बिख़रे मगर संजिदा ज़ज़्बात थे
मेंरे एहसासों की खुशबुएँ थी
तुम्हारी यादोँ की महक थी।
आज फिर ज़िन्दगी ने खोली थी उन्हीं यादोँ की किताब
और आज फ़िर तुम याद आये बेहिसाब।। #बेहिसाब