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जब सफ़र में चलना शुरू किया.... ना रास्ता पता था, न

जब सफ़र में चलना शुरू किया....
ना रास्ता पता था, ना मंजिल पता थी।
 मिले बहुत लोग, कुछ पीछे भी छूट गए।
कुछ के ठाट-बाट देखते बन, कुछ फटे हाल में मिले।
कुछ बड़े बड़े भवनों में बसे, कुछ के सिर की छत भी नहीं।
जब सफ़र में चलना शुरू किया....
पर एक बात,,, एक बात सबमें समान ही मिली,
हाय पैसा,, और पैसा।
पैसे की तलब, भूख से भी अधिक दिखी।
लगा,, जैसे पैसा ही मां-बाप, दीन-ईमान और खुदा।
फिर भी आदमी सुखी कहां है।
जब सफ़र में चलना शुरू किया.....
किसी को अधिक कमाने की चिंता, किसी को संभाल 
रखने की चिंता।
अब तक तो एक बात, मेरी समझ में आ गई थी।
यह पैसा है सब फसाद की जड़,इसलिए मैंने इसे दूर से ही प्रणाम किया🙏🏻।
और,,, कहां साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाए। 
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।
 जब सफ़र में चलना शुरू किया.....
 अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻

©Ashutosh Mishra
  #sfar