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ये बदन चीरती सुबह की किरणें मंद - मंद मुस्काती यह

ये बदन चीरती सुबह की किरणें
मंद - मंद मुस्काती यह पुरवैया 
आसन्न पर्व गणगौर का
अवसर सोलह श्रृंगार का
साजन सीमा पर डटे
मिलन की मनसा उठे
अंदर शोर में मचे
बाहर सहेलियां चहके
डोले मेरे मन की नैया
दूर है इसका खेवैया
हाय रे मेरी दैया
हाय रे मेरी दैया।।

©Mohan Sardarshahari
  हाय रे दैया

हाय रे दैया #कामुकता

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