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कैसे बताऊ साहब.... मेरी बेटी मेरी जान थी। मेरे छोट

कैसे बताऊ साहब....
मेरी बेटी मेरी जान थी।
मेरे छोटे से बगीया की,
इकलौती मेहमान थी।
कैसे बताऊँ साहब....
मेरी बेटी मेरी अभिमान थी।

खिल उठता हर फूल,
जिस डाल पे हाथ वो रखती थी।
झूमने लगता था मेरा आँगन,
जब नन्हे पैरों से वो चलती थी।
वो ही मेरी खुशियां,
वो ही मेरी प्रान थी।
कैसे बताऊ साहब मेरी बेटी मेरी जान थी।

बावला हो जाता था मैं,
जब बेटी मेरी रोती थी।
सारी रात नही सोता था मैं,
जब बेटी मेरी जगती थी।
वो ही मेरे दिल की धड़कन,
वो ही मेरी फरियाद थी।
कैसे बताऊँ साहब.......
मेरी बेटी मेरी जान थी।

लटपटाते होठों से जब,
पापा वो कह के बुलाती थी।
फैलाकर अपनी छोटी बाहों को,
वो सीने से लग जाती थी।
उसकी हर एक खुशी के लिए,
कुर्बान संजीव की जान थी।
कैसे बताऊँ साहब......
मेरी बेटी मेरी मान थी।


संजीव पाण्डेय दिनेश भारत Chandraj Jain Jagadish Kumawat Lakshit Pandey Kalavati Kumari  Leelawati Sharma
कैसे बताऊ साहब....
मेरी बेटी मेरी जान थी।
मेरे छोटे से बगीया की,
इकलौती मेहमान थी।
कैसे बताऊँ साहब....
मेरी बेटी मेरी अभिमान थी।

खिल उठता हर फूल,
जिस डाल पे हाथ वो रखती थी।
झूमने लगता था मेरा आँगन,
जब नन्हे पैरों से वो चलती थी।
वो ही मेरी खुशियां,
वो ही मेरी प्रान थी।
कैसे बताऊ साहब मेरी बेटी मेरी जान थी।

बावला हो जाता था मैं,
जब बेटी मेरी रोती थी।
सारी रात नही सोता था मैं,
जब बेटी मेरी जगती थी।
वो ही मेरे दिल की धड़कन,
वो ही मेरी फरियाद थी।
कैसे बताऊँ साहब.......
मेरी बेटी मेरी जान थी।

लटपटाते होठों से जब,
पापा वो कह के बुलाती थी।
फैलाकर अपनी छोटी बाहों को,
वो सीने से लग जाती थी।
उसकी हर एक खुशी के लिए,
कुर्बान संजीव की जान थी।
कैसे बताऊँ साहब......
मेरी बेटी मेरी मान थी।


संजीव पाण्डेय दिनेश भारत Chandraj Jain Jagadish Kumawat Lakshit Pandey Kalavati Kumari  Leelawati Sharma