तंग हाथों में सनसनी सी उठती हैं जरूरतें गीन कर, आंखें रोज आस में सो जाया करती हैं ख्वाहिशें बुन कर, यूं अदावती मिज़ाज में ये दुनियां नोट छीनती है, और फिर भूल जाया करती है हालात बता कर। क्या आप भी कभी किसी की घीसी चादर को चीरने से चूकना नहीं चाहेंगे?