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वो मजदूर था, कोई उन्हें लाचार कहता था कोई कमजोर ,

वो मजदूर था,
कोई उन्हें लाचार कहता था 
कोई कमजोर ,
हम उनके इस लाचारी और कमजोरी को मज़बुरी का नाम देते थे ,
कुछ लोग उन्हें देश की नींव कहते थे ,
कुछ उन्हें बीमारी का सारथी कहते थे ,
मगर यह सारथी रथविहीन था ,
यह सारथी पैदल चल रहा था
पैर जो सख्त हो गया था और उनमें ठंडा पड़ चुका रक्त 
जो रिस रहा है पथराए तलवो से 
और वो रक्त के निशान छोड़ जा रहा है गर्म पड़ी सड़को पर ,
यू तो ये रक्त चिन्ह इस महान देश के गरिमा में 
एक लाल धब्बा था ,
मग़र आज इसे पूछता कौन था 
क्योंकि वो मजदूर था,

वो मज़दूर था लाचार था
बोझ उनपर बहुत था , 
इस देश के विकास का , इसके सम्मान का ,
मगर आज वो बोझ ढो रहे थे खुद का ,
समान के नाम पर कुछ गंदे कपड़ो और बासी खाने के सिवा कुछ भी नही था उनके पास ,
यही वो पूंजी थी जो उसने बड़े बड़े सहरो की बडी बडी इमारते बना कर कमाई थी ,
मगर उन इमारतों में उनके लिए कोई जगह नहीं थी , 
वो इमारते आज खाली थी सुनसान पड़ी थी ,
मगर उनसे मजदूर के रहने के लिए जगह नही थी , 
वह मजदूर था उसे रोटी की तलाश थी,
इसी के लिए वो अपनो को छोड़कर सहर गया था
और आज इसी लिए वो वापस आ रहा था
वो मजदूर था पैदल अपने गांव की ओर जा रहे था
सड़कों पर उन्हें चलने नही दिया जा रहा था ,
उनके पैरों से निकला रक्त इस देश के सड़को को गंदा कर रहा था,
सड़को पर उन्हें चलने नही दिया जाता था तो वो सुनसान पड़ी रेल की पटरियों पर चलते था
और कभी कभी धक कर वही लेट जाता था
फिर वह चिरनिद्रा में चले जाते था , आज वो काल के ग्रास बने था
वो मजदूर था आज मरा पड़े था
वो मज़दूर था कही वो सड़को पर चल रहे था
कही रेल की पटरियों पर ,
आज इसपर वो अपना अधिकार समझते था
क्योंकि उनके हाथे ने ही इन्हें बनाया था,
मगर बेबस था वो , लाचार था 
समाज उन्हें दया की नज़र से देख रहा था
मगर उनका दर्द नही समझते था
वेदना करुणा सिर्फ़ शब्द बन कर रह गए थे आज ,
क्योंकि वो मजदूर था उसी रोटी की तलाश थी और वो घर जाना चाहता था
#shivendra #Hope
वो मजदूर था,
कोई उन्हें लाचार कहता था 
कोई कमजोर ,
हम उनके इस लाचारी और कमजोरी को मज़बुरी का नाम देते थे ,
कुछ लोग उन्हें देश की नींव कहते थे ,
कुछ उन्हें बीमारी का सारथी कहते थे ,
मगर यह सारथी रथविहीन था ,
यह सारथी पैदल चल रहा था
पैर जो सख्त हो गया था और उनमें ठंडा पड़ चुका रक्त 
जो रिस रहा है पथराए तलवो से 
और वो रक्त के निशान छोड़ जा रहा है गर्म पड़ी सड़को पर ,
यू तो ये रक्त चिन्ह इस महान देश के गरिमा में 
एक लाल धब्बा था ,
मग़र आज इसे पूछता कौन था 
क्योंकि वो मजदूर था,

वो मज़दूर था लाचार था
बोझ उनपर बहुत था , 
इस देश के विकास का , इसके सम्मान का ,
मगर आज वो बोझ ढो रहे थे खुद का ,
समान के नाम पर कुछ गंदे कपड़ो और बासी खाने के सिवा कुछ भी नही था उनके पास ,
यही वो पूंजी थी जो उसने बड़े बड़े सहरो की बडी बडी इमारते बना कर कमाई थी ,
मगर उन इमारतों में उनके लिए कोई जगह नहीं थी , 
वो इमारते आज खाली थी सुनसान पड़ी थी ,
मगर उनसे मजदूर के रहने के लिए जगह नही थी , 
वह मजदूर था उसे रोटी की तलाश थी,
इसी के लिए वो अपनो को छोड़कर सहर गया था
और आज इसी लिए वो वापस आ रहा था
वो मजदूर था पैदल अपने गांव की ओर जा रहे था
सड़कों पर उन्हें चलने नही दिया जा रहा था ,
उनके पैरों से निकला रक्त इस देश के सड़को को गंदा कर रहा था,
सड़को पर उन्हें चलने नही दिया जाता था तो वो सुनसान पड़ी रेल की पटरियों पर चलते था
और कभी कभी धक कर वही लेट जाता था
फिर वह चिरनिद्रा में चले जाते था , आज वो काल के ग्रास बने था
वो मजदूर था आज मरा पड़े था
वो मज़दूर था कही वो सड़को पर चल रहे था
कही रेल की पटरियों पर ,
आज इसपर वो अपना अधिकार समझते था
क्योंकि उनके हाथे ने ही इन्हें बनाया था,
मगर बेबस था वो , लाचार था 
समाज उन्हें दया की नज़र से देख रहा था
मगर उनका दर्द नही समझते था
वेदना करुणा सिर्फ़ शब्द बन कर रह गए थे आज ,
क्योंकि वो मजदूर था उसी रोटी की तलाश थी और वो घर जाना चाहता था
#shivendra #Hope