कबिस्तान में भीड़ नहीं लगती पर आना सभी को यहीं है सफ़र कोई भी हो मजिल हम सब कि यहीं है इबरत हासिल नहीं करता वबाओं के दौर में भी फिल्में देखीं जा रही हैं नमाजो को छोड़ के भी यह मौत हैं उम्र नहीं देखती आमांलो पर जोर दे याह एकला ही रहना है बुरे कामों को छोड़ दे किस बात का घमंड हैं दो गज जमीन छोटा सा कफ़न हैं क्या हासिल करने में लगा है इंसान सिकंदर भी खाली हाथ लौटा हैं तू यह दुनिया कमाने कि जिद्द छोड़ दे ©DILBAG J KHAN #शायरी ऊषा माथुर