देखा नहीं तुम्हे कभी मैंने यूं तो, पर ख़यालो में मेरे "तुम्हारी तस्वीर एक बन जाती है"। एक मुद्दत से मैं भावहीन हूं, ख़्याल तुम्हारा मेरे सोए भाव जगा जाती है। कुछ है नहीं पास मेरे, सिवाए तुम्हारे ख़्याल के मगर, गुरबत में भी ये मुझे शहंशाह कोई बना जाती है। सदियों से इन अंधेरों से मेरी यारियां खूब रहीं है, तस्वीर में झलक तुम्हारी पाकर, दीवाली के जैसे दुनिया मेरी जगमगा जाती है। इस दुनिया में, बेनाम सा फिरता हूं दर बदर, ख्यालों में ही सही, तसव्वुर तेरा मुझे एक नई पहचान दिला जाती है। मैं टूटा हुआ हूं किसी कांच की तरह, बिलकुल चकनाचूर, ताबीर तेरी इस टूटे हुए को, एक नया इंसा बना जाती है। ♥️ Challenge-671 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।