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तू सोचता है मैं अंधेरे से डर जाती हूं, हकीकत क्या

तू सोचता है मैं अंधेरे से डर जाती हूं,
हकीकत क्या है तुझसे कह न पाती हूं,
अंधेरा भी उतना गहरा नहीं होता,
जितनी गहराई से तुझमें खो जाती हूं,
तू सोचता है मैं.....................!
खुली फिजाओं की ये मस्त हवा,
जो तेरे पास से गुजर कर आती है,
छूकर मेरे केशो को इस कदर,
मन्द शब्दों से कानों में कह जाती है,
वो तेरा दिलबर तेरे लिए बना है,
यह सुन मदमस्त हो जाती हूं,
तू सोचता है मैं....................! तू सोचता है मैं............!
तू सोचता है मैं अंधेरे से डर जाती हूं,
हकीकत क्या है तुझसे कह न पाती हूं,
अंधेरा भी उतना गहरा नहीं होता,
जितनी गहराई से तुझमें खो जाती हूं,
तू सोचता है मैं.....................!
खुली फिजाओं की ये मस्त हवा,
जो तेरे पास से गुजर कर आती है,
छूकर मेरे केशो को इस कदर,
मन्द शब्दों से कानों में कह जाती है,
वो तेरा दिलबर तेरे लिए बना है,
यह सुन मदमस्त हो जाती हूं,
तू सोचता है मैं....................! तू सोचता है मैं............!

तू सोचता है मैं............!