मरना कोई अंत नहीं बल्कि एक नयी शुरूआत है, बिछड़ कर मिलने से होती फिर नयी मुलाक़ात है। यादें हों मुस्कुराती हुईं कि कभी कोई भुला न पाये, जाने के बाद भी रहें हम ज़िन्दा, यही तो सौग़ात है। अपना ही अपने के काम न आये तो कैसी ज़िंदगी, दो पल उनके साथ रहना ही, ख़ुशियों में बर्कात है। दाएँ-बाएँ के साथ ऊपर भी नज़र अपनी रखना है, अनजान नहीं, पल भर में करता फिर हिसाबात है। कुछ अच्छा करोगी तभी याद रखी जाओगी 'धुन', आजकल दुनिया-भर में वैसे ही बड़े बुरे हालात हैं। नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH30 के साथ और "मनुष्यता" पर कविता लिखें। (मूल कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।