ऐ दौर-ए-नफ़रत के हुक्मरानों सुनो ज़मीनों व आसमानों! ऐ बे-ज़मीरों के ख़ानक़ाहों ऐ तख़्त-ताजों के पासबानों! ये तानाशाही नहीं चलेगी। उन्हीं की आंखों के हैं ये सपने ज़मीं भी अब जो लगी महकने फ़सल उगाते किसान जिसमें तू आएगा अगर उन्हे झपटने ये जग लुटाई नहीं चलेगी। तू हम पे कितने सितम करेगा! तू सर हमारे क़लम करेगा! मगर इसे कैसे ख़म करेगा! हमारी आवाज़ें कम करेगा! ये कज-अदाई नहीं चलेगी। #yqaliem #kisaanprotest #hindiurdupoetry #kisaan #daur_e_nafrat बे-ज़मीर - Without conscience पासबान - Gaurds ख़ानक़ाहों- Monastery