#अपनीबात अब.. ठण्डी ठण्डी रातों की वो पहर नहीं होती.. अब.. अपनी-अपनी बातों की दोपहर नहीं होती.. अब.. बाँहों में बाँहें और कान्धे पर सिर, अब.. पाँव पड़े हो पानी में वो नहर नहीं होती.. अब.. बिन बूझे समझे जाने जो,माने है हर बात, अब.. महफिल में उनकी, वो कदर नहीं होती.. अब.. उथल पुथल और, है विचलित सा मन, अब.. राहत मिलती हो हमको, वो सहर नहीं होती.. अब.. चलो उठाओ खुद ही को खुद ही से आप, अब.. इस अन्जानी सी बस्ती में,इज्ज़त अगर नहीं होती.. ©Ram Unij Maurya #रामउनिज_मौर्य #WorldBloodDonorDay