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प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं! प्री

प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं!
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं!

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।

देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
 
गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणि का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

©Satyam Chaurasiya #kanha 
#janmashtami 
#Krishna 
#DearGopal
#RadhaKrishna 
#happyjanmashtami 
#कृष्ण
प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं!
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं!

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।

देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
 
गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणि का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

©Satyam Chaurasiya #kanha 
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#कृष्ण