घर की जिम्मेदारी में छोड़ा गाँव जरूरत ने शहर से जोड़ा गाँव वो कोयल की मीठी आवाज बच्चों की किलकारी सब खो गयी आज वो हरियाली गेंहूँ के खेतों की वो छटा निराली खेतों की हरी सरसों के पीले फूल जमाना आज गया सब कुछ भूल छतों पर उड़ती पतंग बच्चों के अंदर की उमंग गायब हो गए अब कदर कि अब हम सब हो गए दंग भाई चारा हो गया अब रुष्ट जितना है उससे हैं असन्तुष्ट न अब मिलतेअलग चौधरी न मिलते जुम्मन चच्चा हैं खो गया है बचपन अपना अब हम न रह गए बच्चा हैं