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सूरज की पहली किरण, को तरस रहा हूँ मैं, कब उठूँगा ज

सूरज की पहली किरण,
को तरस रहा हूँ मैं,
कब उठूँगा जल्दी,
वो सवेरा ढूँढ रहा हूँ मैं।
प्रकृति के पालने में,
खेलना है मुझे,
फूलों पर भंवरा सा,
कब मंडराऊँगा मैं।
नदी जो इठलाती हुई,
बह रही हैं ऊंचे पहाड़ों से,
उस अचल की ऊंचाई तक,
कब पहुँचूँगा मैं।
पक्षियों के मानिंद मुझे,
भी चहकना है,
उड़ना है यहाँ वहाँ,
ऊँचे अम्बर को कब छूऊँगा मैं।  #poem #hindipoetry #hindi #sahitya #goodmorning #yqdidi #yqbaba

Madhu Jhunjhunwala 
Saleem Akhter 
Rakesh Chawla 
meenakshi rohatgi
सूरज की पहली किरण,
को तरस रहा हूँ मैं,
कब उठूँगा जल्दी,
वो सवेरा ढूँढ रहा हूँ मैं।
प्रकृति के पालने में,
खेलना है मुझे,
फूलों पर भंवरा सा,
कब मंडराऊँगा मैं।
नदी जो इठलाती हुई,
बह रही हैं ऊंचे पहाड़ों से,
उस अचल की ऊंचाई तक,
कब पहुँचूँगा मैं।
पक्षियों के मानिंद मुझे,
भी चहकना है,
उड़ना है यहाँ वहाँ,
ऊँचे अम्बर को कब छूऊँगा मैं।  #poem #hindipoetry #hindi #sahitya #goodmorning #yqdidi #yqbaba

Madhu Jhunjhunwala 
Saleem Akhter 
Rakesh Chawla 
meenakshi rohatgi