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पल्लव की डायरी गाँधी तेरे सपनो का स्वराज्य,तहस नहस

पल्लव की डायरी
गाँधी तेरे सपनो का स्वराज्य,तहस नहस
अंतिम साँसे ले रहा है
जाति धर्म भाषा ,हिंसा के हवाले वतन
अवसरवादिता का दौर चल रहा है
कराहती सब व्यवस्था ग़ौरो जैसी
जुल्म सितम जोरो पर,सियासतों का बढ़ रहा है
धराशाही हो गयी नैतिकता
जनाजा लोकतंत्र का निकल रहा है
गुंडे मवाली सत्ताधीन
जोर जबस्ती निवाला जनता का छिन रहा है
मूल्यो की राजनीति का हो गया समापन
जिसे मौका मिला वह अपना घर भर रहा है
तुम्हारी समाधि पर कुछ फूल चढ़ाकर
हर कोई गाँधी बनने का नाटक कर रहा है
                                             प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #gandhijayanti समाधि पर फूल चढ़ाकर,हर कोई गाँधी बनने का नाटक कर रहा है
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