सुनो जनाब, दुनिया तो ताकत पर चलती है नियमों के बंधन में कमज़ोर जनता ढलती है जब गुंडे नेता बन कर, देश को ही लूट रहे हैं जनतंत्र के सारे स्तंभ बिक रहे या टूट रहे हैं कल तक जो वर्दी को बंधुआ सा नचा रहे थे कानून के साए में कैसे घुटनों पर आ रहे हैं बेशर्मी की सारी हदें जब पार कर चुके नेताजी नैतिकता के नाम पर,अब इस्तीफा थमा रहे हैं (पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) जनतंत्र के नाम पर, गुंडे खादी पहन कर काम पर सुनो जनाब, दुनिया तो ताकत पर चलती है नियमों के बंधन में कमज़ोर जनता ढलती है जब गुंडे नेता बन कर, देश को ही लूट रहे हैं जनतंत्र के सारे स्तंभ बिक रहे या टूट रहे हैं कल तक जो वर्दी को बंधुआ सा नचा रहे थे