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संभल जा जरा हाथों से हृदयी संकेत बनाकर, सार्वजनिक

संभल जा जरा 
हाथों से हृदयी संकेत बनाकर,
सार्वजनिक या गुप्त छिपाकर,
सखी ! किसको रिझा रही हो।
दुनिया बेढंगी , बङी बावरी 
तुम नासमझ, कर अटखेली,
मिलन का रास्ता सुझा रही हो ।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  संभल जा जरा

संभल जा जरा #कविता

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