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सुबह भी मोहन दीवानी हुई, मन से मन अनजानी हुई। कह

सुबह भी मोहन दीवानी हुई, 
मन से मन अनजानी हुई। 
कहीं नहीं लगता हैं ये मन, 
हर काम में होती रहती बिगड़न। 
सब नासमझ सी कह देते हैं, 
हम सबकी ही सह लेते हैं। 
कहते नहीं जवाब में कुछ, 
ना ही कभी जवाब देते हैं।

©Divyanshi Triguna "Radhika"
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