आओ सुनाऊं एक पिता और पुत्र की कहानी।। बचपन की जुबानी।।बचपन की जुबानी।। पिता उससे प्यार करें शाम को थे पास सुलाते।। जब भी वो जिद करता, ढेर सारी कहानियां हैं सुनाते।। एक दिन अचानक एक महामारी ने आकर बच्चे को घेरा।। पिता पर आफत आना पड़ी..जैसे ग्रहों ने घेरा।।. सबकुछ बेंचे किडने बेंचे, बेचें घर और कार।। लेकिन उम्मीद की ना दिखे किरण न दिखे कोई आसार। महामारी विचित्र अनोखी सी है.ना उसका कोई उपचार। समय का पहिया भागे ऐसे जैसे रॉकेट की रफ्तार। क्या करे घर और परिवार।। कोशिश बहुत करने पर मिला एक उपचार ।। सबकुछ करके भी न हों पाए उसका कीमत असंख्य हजार।। अंदर से रो रही आत्मा,मन को है झकझोरे।।. कुछ न कर पाने की कुंठा सबको आकर घेरे।। बेबसी आन पड़ी दिल में...करके सब के दिल पर डेरे।। अब समय के हाथों छोड़ दिया है,करके प्रयास हजार।। वही विधाता लिखता है किस्मत सबकी,वही करेगा बेड़ा पार।। शायद बच जिंदगी बेटे की,और लौट आए खुशियां अपार।। आस में बैठे हैं अब भी ।। कुछ हो जाए ऐसा चमत्कार।। लोकेश कुमार मिश्रा Dedicated To All Fathers Who Are Struggling ..