अन्नदाता है ये सबकी सुनता है। अमीर हो चाहे गरीब सबके भाग्य की सुनता है। पर इस गरीब अन्नदाता की कौन सुने? कौन इसके दर्द को अपना दर्द समझें? नहीं कोई नहीं है यहां पर...... वो राजनीतिक संगठन, वो दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए, राजनीतिक मोहरा बनाते उसी अन्नदाता को बहलाने के लिए। देखता है जब किसान इस सूखे हुए रेगिस्तान में अपनी सूखी हुई फ़सल, अपनी ही दुर्दशा पर विचलित होता और सोचता, क्या भरूं, क्या ब्याज, क्या असल। अंहकारी नहीं है तभी तो बंजर-सी धरती पर अनाज उगाने का माद्दा रखता है, पर ये भूमिपुत्र अपने ही हक की लङाई लङने से डरता है। पर ये किसान है, अटल है अपने कर्म पर, आँच तक न आने देगा भूमि धर्म पर। यह अपने देश के लिए रोज नए सपने बुनता है, क्या करें यह अन्नदाता है ना, सबकी सुनता है।। #अन्नदाता अन्नदाता है ये सबकी सुनता है। अमीर हो चाहे गरीब सबके भाग्य की सुनता है। पर इस गरीब अन्नदाता की कौन सुने? कौन इसके दर्द को अपना दर्द समझें? नहीं कोई नहीं है यहां पर...... वो राजनीतिक संगठन, वो दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए,