मैं सौर्य का गीत सदा गाता हूं, किंचित भू -भाग नहीं पर भारत देश केहलाता हूं, माताये करती यहां विलाप नहीं सहीदों को तिलक लगाये जाते हैं, यहां अभिमन्यु से वीरों को लोरी रूप युद्ध कौशल सिखाये जाते हैं, बदलें क्यों ना भाषा,रूप और मौसम हर कदम पर, पर मिट्टी की ख़ुशबू एक सी सौंधी आती है, लगे चोट कश्मीर को तो जलती कन्यकुमारी की भी छाती है, हो भारतीय कहीं भी तो उसे विश्व पटल पर खोजा जाता है, यहां बालक को भगवान और नारी को दुर्गा सा पूजा जाता है, वेदों की ज्ञान गंगा जहां विवेकानंद सा संत बहाता है, चांद को कटोरी में उतार कर भी वहां तिरंगा फहराया जाता है, देश नहीं बटता यहां विचारों के बटने से, खिलते हैं यहां गुलिस्ता किसानों के ख़ून पसीने से, आधुनिकता की नाव में प्राचीन विश्व - गुरु का ध्वज लगाता हूं, यहां तीनों रंगों को ओढ़कर ही तो मै भारत देश केहलाता हूं #independenceday #poem #nojoto #celebration #poetry #india #patrotic