---------सजल हिंदी,उर्दू माँ जाई बहन है सुंदरता के रूपों से मगन है भाषा के श्रृंगारों में सुंदर दोनों दर्द एक जैसा सहन है मैं, मैं तूँ, तूँ में क्या अन्तर भाषा के खुले जैसे गगन है अदबो तहजीब की हिंदी, उर्दू घोंघट मे सजी जैसे दुल्हन है एहसासों के बीच में हुँ खड़ा भाषा में दोनों मन मोहन है वर्णमाला से होती समान बग़यन की जैसे ये सुमन है करता हूं सब के सब स्वीकार क्योंकि ये धरती की सघन है अज़हर अली इमरोज़ ©Azhar Ali Imroz sajal #worldpostday