मैं फ़कीर बड़ा बदनाम सा.. है सफ़र भी मेरा गुमनाम सा.. सिर्फ कलम सीयाहीं का साथ मुझे... नगमे लिखता हूं इंकलाब का.. कैसे मुल्क कैसे है बाशिंदे.. क्या यही वो पल था इंसाफ का? बंट गया वतन..सो गई है खुदाई.. क्या हुआ वो सपना मेरे राम और अशफ़ाक का? मेरे राम ..मेरे अशफ़ाक