जाने किस बात की वो मुझको सज़ा देता है मेरी मस्ती भरी आँखों को रुला देता है सामने रखके निगाहों के वो तस्वीर मेरी अपने कमरे के चरागों को बुझा देता है किस तरह बात लिखूं दिल उसे वो अक्सर दोस्तों को मेरे खत पढ़के सुना देता है मैं भी देखूंगी तुझे मांगके इक दिल रब से लोग कहते हैं कि माँगो तो खुदा देता है है मज़ाने से अलग अपना नसीबा सुम्बुल जो भी आता है मुझे ज़ख्म नया देता है खुदा देता है सुम्बुल