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कभी मेरे साथ बैठो, शाम-ए-शनिवार को। मैं वैसा नही

कभी मेरे साथ बैठो, 
शाम-ए-शनिवार को। 
मैं वैसा नहीं हूँ,जैसा 
होता हूँ सोमवार को।

©ग्रामीणांचल (रत्नेश यादव)
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