बचपन और जिम्मेदारी मेरे जिम्मेदारी कुछ ऐसा था मेरे घर के चूल्हे मेरे पे आस था मै सर्दियों में ठिठुरता, गर्मियों में तपता ओर, बरसातो मे तन को भिगोता तो मेरे धर के चूल्हे है जलता।। कभी-कभी तो तडपते हुए बुखारो में दोडता ओर जिम्मेदारी के बीच अपने आप को जलाता।। जिम्मेदारीयां