उस वक्त होकर के, अधीर बैठ गया, जब मैं खड़ा हुआ, तो शरीर बैठ गया। दुनिया को जीतने का जब वक्त था मेरा, हुआ यूं कि मैं बनकर, फकीर बैठ गया। आईने ने पहचानने से इंकार कर दिया, मैं जिद्दी लेकर अपनी, तस्वीर बैठ गया। हर बाधा से कुछ इस कदर डरता रहा मैं, रस्सी को भी समझ के, जंजीर बैठ गया। उसने बस गुस्से से बदतमीज कहा मुझे, लगा जैसे सीने में मेरे कोई, तीर बैठ गया। आए थे सब दोस्त मेरे मस्ती के मूड में, क्या लेके रोना तू भी यार, ओमबीर बैठ गया। ✍️ Ombir Kajal ©Ombir Kajal baith gya