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इस्लाम की आलोचना कैसे करे! 👶👤READ IN BE

   इस्लाम की आलोचना कैसे करे!

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◆ इस्लाम की आलोचना कैसे करें?
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सौ साल पहले, 1920 में लाहौर में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जो भगवान कृष्ण और महर्षि दयानन्द पर आक्षेप करती थीं। एक ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’, और दूसरी ‘बीसवीं सदी का महर्षि। दोनों की भाषा बड़ी गंदी और हिन्दू धर्म पर घृणित प्रहार था। इसके उत्तर में एक आर्य समाजी विद्वान ने ‘रंगीला रसूल’  पुस्तक लिखी, जिस में प्रोफेट मुहम्मद के जीवन का तथ्यपूर्ण वर्णन था। लेखक अपना नाम नहीं देना चाहते थे, पर उक्त पुस्तकों का उत्तर देना भी आवश्यक था। उन्होंने प्रतिष्ठित प्रकाशक महाशय राजपाल (जिन के यशस्वी बेटों का आज ‘राजपाल एंड सन्स’ और ‘हिन्द पॉकेट बुक्स’ है) से निवेदन किया। तब लेखक के स्थान पर ‘‘दूध का दूध, पानी का पानी’’ देकर पुस्तक छपी।

क्रुद्ध मुस्लिमों ने लेखक का नाम बताने को कहा, वरना प्रकाशक पर हमले की धमकी दी। परन्तु राजपाल जी ने लेखक को दिया वचन नहीं तोड़ा। उन्हें धमकियाँ मिलने लगीं। उन पर 1926 में खुदाबख्श नामक एक व्यक्ति ने छुरे से हमला किया। संयोगवश उसी समय आर्य समाज के सन्यासी स्वामी स्वतंत्रानन्द उधर से गुजर रहे थे, और राजपाल से मिलने दुकान पर आ गए। उन्होंने राजपाल को बचाया। खुदाबख्श पकड़ा गया और उसे सात साल की जेल हुई। राजपाल तीन महीने अस्पताल में रह ठीक हुए। कुछ बाद फिर एक मुसलमान ने दुकान पर संयोग से बैठे स्वामी सत्यानन्द को राजपाल समझ पर छुरे से हमला किया। वह भी पकड़ा गया, और उसे जेल हुई। सत्यानन्द भी दो महीने अस्पताल रहे।
   इस्लाम की आलोचना कैसे करे!

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◆ इस्लाम की आलोचना कैसे करें?
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सौ साल पहले, 1920 में लाहौर में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जो भगवान कृष्ण और महर्षि दयानन्द पर आक्षेप करती थीं। एक ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’, और दूसरी ‘बीसवीं सदी का महर्षि। दोनों की भाषा बड़ी गंदी और हिन्दू धर्म पर घृणित प्रहार था। इसके उत्तर में एक आर्य समाजी विद्वान ने ‘रंगीला रसूल’  पुस्तक लिखी, जिस में प्रोफेट मुहम्मद के जीवन का तथ्यपूर्ण वर्णन था। लेखक अपना नाम नहीं देना चाहते थे, पर उक्त पुस्तकों का उत्तर देना भी आवश्यक था। उन्होंने प्रतिष्ठित प्रकाशक महाशय राजपाल (जिन के यशस्वी बेटों का आज ‘राजपाल एंड सन्स’ और ‘हिन्द पॉकेट बुक्स’ है) से निवेदन किया। तब लेखक के स्थान पर ‘‘दूध का दूध, पानी का पानी’’ देकर पुस्तक छपी।

क्रुद्ध मुस्लिमों ने लेखक का नाम बताने को कहा, वरना प्रकाशक पर हमले की धमकी दी। परन्तु राजपाल जी ने लेखक को दिया वचन नहीं तोड़ा। उन्हें धमकियाँ मिलने लगीं। उन पर 1926 में खुदाबख्श नामक एक व्यक्ति ने छुरे से हमला किया। संयोगवश उसी समय आर्य समाज के सन्यासी स्वामी स्वतंत्रानन्द उधर से गुजर रहे थे, और राजपाल से मिलने दुकान पर आ गए। उन्होंने राजपाल को बचाया। खुदाबख्श पकड़ा गया और उसे सात साल की जेल हुई। राजपाल तीन महीने अस्पताल में रह ठीक हुए। कुछ बाद फिर एक मुसलमान ने दुकान पर संयोग से बैठे स्वामी सत्यानन्द को राजपाल समझ पर छुरे से हमला किया। वह भी पकड़ा गया, और उसे जेल हुई। सत्यानन्द भी दो महीने अस्पताल रहे।
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