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मदहोशी की अवस्था को पहचान जाओ न, मेरी नादानियों को

मदहोशी की अवस्था को पहचान जाओ न,
मेरी नादानियों को माफ़ करो मान जाओ न..!

दूरियों से न निभाओ चाँद और पृथ्वी सा रिश्ता,
रौशन करो दीये सा मुझे तुम मुझमें जगमगाओ न..!

हर क़दम मरते दम तक साथ दूँगा मैं तुम्हारा,
तन्हाईयों से घबरा कर यूँ ही डगमगाओ न..!

पर ख़ुद को पहुँचा कर तकलीफ़ माँगता हूँ मैं भीख़,
घुट घुट कर जीना आँसुओ को पीना यूँ मुझे सताओ न..!

कोई हुई हो मुझसे खता जो न सको तुम जता,
अधर रख के मौन आँखों से ही बताओ न..!

रूठी रूठी नहीं लगती हो अच्छी तुम सनम,
मुख पर छाई उदासी को खिलखिला कर हटाओ न..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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