धरती का दर्द *********** धरती खामोश थी जब तुम पेड़ काट रहे थे वो तब भी खामोश थी जब तुम उसे चीरकर पानी निकाल रहे थे वो अब भी खामोश है तुम्हे विलाप करते देखकर चिल्लाओ गला़ा फाड़कर देखो जरा आँखे निकालकर किस तरह उर्वर धरती को बंजर तुमने बनाया आज उसने एक कतरा के लिए तुमको तरसाया हे स्वार्थी ! अब तो संभल जाओ अपने कृत्य को न दोहराओ वरना इससे भी भयंकर दास्तान होगी धरती तो होगी पर शायद रेगिस्तान होगी पानी का मोल तू समझ तो जायेगा बिडंबना ये है किसी कीमत पर भी पानी न पायेगा । संजय श्रीवास्तव धरती का दर्द