शायरी जो लिखता हूं... किसी ने पूछा इतना जो शायरी में दिखते हो कौन है वो खुशनसीब जिसके लिए इतना प्यार भरा नगमा जाने-अंजाने मैं लिखते हो. आईने में तो दिखता नहीं ये जो अक्स है तुम्हारा . पर तेरी शायरी में क्यूँ दिखता है क़ोई शख्स ये जो पुराना. ढूंढ़ रहे थे बरसों है, जो वो सुकुं शायद. हुनरमंद हों शायद, लिखते जब भी हों आयत. पढ़ते हैं तसल्ली से. जैसे क़ोई हों इनायत. तारीफ़ करूँ क्या तेरी लिखावट की. दुनियां नहीं हैं ये दिखावट की. खामोशियाँ जो मेरी पढ़ले तू. तेरी पंक्तियों में कही गढ़ ले तू. मेरी आँखों में दिखा है. मेरे दिल पर जो लिखा हैं. जिस स्याही से भी लिखूँगी. बस फीकी सी मैं दिखूँगी. जितनी भी कोशिश कर लूं. मैं तुझसा ना लिखूँगी. नजरों में तेरी हमेशा पर रूह मैं ना दिखूंगी. दिल का जो खाली पन्ना, दिल क़ी जो थी तमन्ना. जो ख़ास था तेरा वो. उसें मुझेसें भीं मिला दे. तेरी फुर्सतों के पल दो. तू मुझको भी दिला दे. होती हैं शायरी क्या ये मुझको भी सीखा दे. है डायरी तेरी जो वो मुझकों भी दिखा दे. इन लफ्जों की ये तलब, इन अश्कों की ये अदब. उन यादों का ये नशा, उन वादों की ये दशा. मैं तुझसी ही दिखूंगी. मैं तुझसा ही लिखूँगी. मैं शिद्दतों सी दिखूँगी. मैं मिन्नतों सी लिखूँगी. लफ्ज़ो में तेरे जो ये अहसास हैं, रूह पर मेरे जो ये एहसान हैं. बंद किताब सा पड़ा हूं मैं, अंधेरों मैं खड़ा हूं मैं. दिल क़े बंद कमरे में कैद सा मैं दिखता हूं. सच-झूठ, प्यार-यार, दर्द-फ़र्ज, मर्ज़-अर्ज़, वफ़ा-नफा, जिक्र-फ़िक्र, जीत-हार, सुःख-दुःख, रंज-तंज, चैन-रैन. जब भी मन करें तब बस लफ्ज़ अपने लिखता हूं. ज़िन्दगी क़े लम्हों में अजनबी सा दिखता हूं.x ©Aarchi Advani शायरी जो लिखता हूं... किसी ने पूछा इतना जो शायरी में दिखते हो कौन है वो खुशनसीब जिसके लिए इतना प्यार भरा नगमा जाने-अंजाने मैं लिखते हो.