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क्षमा वाणी पर्व क्षमा भी है एक उत्सव । जिसे मनाक

क्षमा वाणी पर्व

 क्षमा भी है एक उत्सव ।
जिसे मनाकर करते खुद पे गौरव।।
जहां दसलक्षण धर्म है एक पर्व ।।
जहां क्षमा मांग होता है खुद पर गर्व।
पर्युषण पर्व के अंतिम दिन मानते यह पर्व।।
जो है मान राग द्वेष अहंकार से भरे।
हम मनाते है यह पर्व इन सब से परे।।
मांगते है सबसे क्षमा फिर छोटे हो या हो बड़े।
कितना अहंकार लिए हम कहा कहा है फिरे।।
प्रमाद वश व्यवहार से,वाणी से जो हुई गलती।
उसकी हम क्षमा मांगते करते हाथ जोड़ विनती।।
जाने में अनजाने में किसी का जो दिल दुखा हो हमसे।
छूकर चरण मांगते है माफी हम उनसे।।
मांगते है क्षमा पूरे सम्मान से।
करते है क्षमा पूरे आदर भाव से।।

©chahat
  क्षमा वाणी पर्व
shilpijain8470

chahat

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क्षमा वाणी पर्व #Shayari

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